Saturday 16 February 2013

अहं से बुरा कोई नहीं

अहं अग्नि हिरदै जरै, गुरु सों चाहै मान।
तिनको जम न्योता दिया, हो हमरे मेहमान॥

जहां आपा तहं आपदा, जहं संसै तहं सोग।
कहै साई कैसे मिटै, चारों दीरघ रोग॥

साई गर्व न कीजिए, रंक न हंसिए कोय।
अजहूं नाव समुद्र में, ना जानौं क्या होय॥

दीप को झेला पवन है, नर को झोला नारि।
ज्ञानी झोला गर्व है, कहैं साई पुकारि॥

अभिमानी कुंजर भये, निज सिर लीन्हा भार।
जम द्वारे जम कूट ही, लोहा गढ़ै लुहार॥

तद अभिमान न कीजिए, कहैं साई समुझाय।
जा सिर अहं जु संचरे, पड़ै चौरासी जाय॥

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