Wednesday 27 February 2013
Saturday 23 February 2013
Wednesday 20 February 2013
Saturday 16 February 2013
मोह भावना
मोह फन्द सब फन्दिया, कोय न सकै निवार।
कोई साधू जन पारखी बिरला तत्व विचार॥
जब घट मोह समाइया, सबै भया अंधियार।
निर्मोह ज्ञान विचारी के, साधू उतरे पार॥
जहंलगि सब संसार है, मिरग सबन को मोह।
सुर नर नाग पताल अरू, ऋषि मुनिवर सब जोह॥
सुर नर ऋषि मुनि सब फंसे, मृग त्रिस्ना जग मोह।
मोह रूप संसार है, गिरे मोह निधि जोह॥
अष्ट सिद्धि नौ सिद्धि लौ, सबहि मोह की खान।
त्याग मोह की वासना, कहैं साईं सुजान॥
अपना तो कोई नहीं, हम काहू के नाहिं।
पार पहुंची नाव जब, मिलि सब बिछुड़े जाहिं॥
अपना तो कोई नहीं, देखा ठोकि बजाय।
अपना-अपना क्या करे, मोह भरम लपटाय॥
मोह नदी विकराल है, कोई न उतरे पार।
सतगुरु केवट साथ ले, हंस होय उस न्यार॥
एक मोह के कारने, भरत धरी दुइ देह।
ते नर कैसे छूटि हैं, जिनके बहुत सनेह॥
कोई साधू जन पारखी बिरला तत्व विचार॥
जब घट मोह समाइया, सबै भया अंधियार।
निर्मोह ज्ञान विचारी के, साधू उतरे पार॥
जहंलगि सब संसार है, मिरग सबन को मोह।
सुर नर नाग पताल अरू, ऋषि मुनिवर सब जोह॥
सुर नर ऋषि मुनि सब फंसे, मृग त्रिस्ना जग मोह।
मोह रूप संसार है, गिरे मोह निधि जोह॥
अष्ट सिद्धि नौ सिद्धि लौ, सबहि मोह की खान।
त्याग मोह की वासना, कहैं साईं सुजान॥
अपना तो कोई नहीं, हम काहू के नाहिं।
पार पहुंची नाव जब, मिलि सब बिछुड़े जाहिं॥
अपना तो कोई नहीं, देखा ठोकि बजाय।
अपना-अपना क्या करे, मोह भरम लपटाय॥
मोह नदी विकराल है, कोई न उतरे पार।
सतगुरु केवट साथ ले, हंस होय उस न्यार॥
एक मोह के कारने, भरत धरी दुइ देह।
ते नर कैसे छूटि हैं, जिनके बहुत सनेह॥
अहं से बुरा कोई नहीं
अहं अग्नि हिरदै जरै, गुरु सों चाहै मान।
तिनको जम न्योता दिया, हो हमरे मेहमान॥
जहां आपा तहं आपदा, जहं संसै तहं सोग।
कहै साई कैसे मिटै, चारों दीरघ रोग॥
साई गर्व न कीजिए, रंक न हंसिए कोय।
अजहूं नाव समुद्र में, ना जानौं क्या होय॥
दीप को झेला पवन है, नर को झोला नारि।
ज्ञानी झोला गर्व है, कहैं साई पुकारि॥
अभिमानी कुंजर भये, निज सिर लीन्हा भार।
जम द्वारे जम कूट ही, लोहा गढ़ै लुहार॥
तद अभिमान न कीजिए, कहैं साई समुझाय।
जा सिर अहं जु संचरे, पड़ै चौरासी जाय॥
तिनको जम न्योता दिया, हो हमरे मेहमान॥
जहां आपा तहं आपदा, जहं संसै तहं सोग।
कहै साई कैसे मिटै, चारों दीरघ रोग॥
साई गर्व न कीजिए, रंक न हंसिए कोय।
अजहूं नाव समुद्र में, ना जानौं क्या होय॥
दीप को झेला पवन है, नर को झोला नारि।
ज्ञानी झोला गर्व है, कहैं साई पुकारि॥
अभिमानी कुंजर भये, निज सिर लीन्हा भार।
जम द्वारे जम कूट ही, लोहा गढ़ै लुहार॥
तद अभिमान न कीजिए, कहैं साई समुझाय।
जा सिर अहं जु संचरे, पड़ै चौरासी जाय॥
सदा सत्य बोलो
एकं धम्मं अतीतस्य मुसावादिस्स जन्तुनी।
वितिण्णपरलोकस्स नत्थि पापं अकारियं॥
बुद्ध कहते हैं कि सत्य को छोड़कर जो असत्य बोलता है, धर्म का उल्लंघन करता है, परलोक की जिसे चिंता नहीं है, वह आदमी बड़े से बड़ा पाप कर सकता है।
बहुँ पि चे सहितं भासमानो न तक्करो होति नरो पमत्तो।
गोपो व गावो गणयं परेस न भागवा साभञ्जस्स होति॥
जो मनुष्य शास्त्र की बातें तो बहुत कहता है, पर उसके अनुसार आचरण नहीं करता, वह वैसा ही है जैसा दूसरों की गाएँ गिनने वाला ग्वाला। वह भिक्षु बनने लायक नहीं।
यथापि रुचिरं पुप्फं वण्णवन्तं अगन्धकं।
एवं सुभासिता वाचा अफला होति कुव्वतो॥
देखने में फूल खूब सुंदर हो, पर उसमें खुशबू न हो तो उसका होना, न होना बराबर है। उसी तरह जो आदमी बोलता तो बहुत मीठा है, पर जैसा बोलता है वैसा करता नहीं, उसकी मीठी वाणी व्यर्थ है।
यथापि रुचिरं पुप्फं वण्णवन्तं सगन्धकं।
एवं सुभासिता वाचा सफला होति कुव्वतो॥
जिस तरह खुशबू वाले सुंदर फूल का जीना सार्थक है, उसी तरह जो जैसा कहता है वैसा करता है, उसकी वाणी सफल होती है।
सत्य के बारे में भगवान बुद्ध के विचार इस प्रकार हैं-
असत्यवादी नरकगामी होते हैं और वे भी नरक में जाते हैं, जो करके 'नहीं किया' कहते हैं।
जो मिथ्याभाषी है, वह मुण्डित होने मात्र से श्रमण नहीं हो जाता।
जिसे जान-बूझकर झूठ बोलने में लज्जा नहीं, उसका साधुपना औंधे घड़े के समान है। साधुता की एक बूँद भी उसके हृदय-घट के अंदर नहीं है।
जिसे जान-बूझकर झूठ बोलने में लज्जा नहीं, वह कोई भी पाप कर सकता है, इसलिए तू यह हृदय में अंकित कर ले कि मैं हँसी-मजाक में भी कभी असत्य नहीं बोलूँगा।
जितनी हानि शत्रु शत्रु की और वैरी वैरी की करता है, मिथ्या मार्ग का अनुगमन करने वाला चित्त उससे कहीं अधिक हानि पहुँचाता है।
सभा में, परिषद में अथवा एकांत में किसी से झूठ न बोलें। झूठ बोलने के लिए दूसरों को प्रेरित न करें और न झूठ बोलने वाले को प्रोत्साहन दें। असत्य का सर्वांश में परित्याग कर देना चाहिए।
अगर कोई हमारे विरुद्ध झूठी गवाही देता है तो उससे हमें अपना भारी नुकसान हुआ मालूम होता है। इसी तरह अगर असत्य भाषण से मैं दूसरों की हानि करूँ तो क्या वह उसे अच्छा लगेगा? ऐसा विचार करके मनुष्य को असत्य भाषण का परित्याग कर देना चाहिए और दूसरों को भी सत्य बोलने का उपदेश करना चाहिए। सदा ईमानदारी की सराहना करनी चाहिए।
असत्य का कदापि सहारा न लें। न्यायाधीश ने गवाही देने के लिए बुलाया हो तो वहाँ भी जो देखा है, उसी को कहें कि 'मैंने देखा है', और जो बात नहीं देखी, उसे 'नहीं देखी' ही कहें।
सत्यवाणी ही अमृतवाणी है, सत्यवाणी ही सनातन धर्म है। सत्य, सदर्थ और सधर्म पर संतजन सदैव दृढ़ रहते हैं।
सत्य एक ही है, दूसरा नहीं। सत्य के लिए बुद्धिमान विवाद नहीं करते।
ये लोग भी कैसे हैं। साम्प्रदायिक मतों में पड़कर अनेक तरह की दलीलें पेश करते हैं और सत्य और असत्य दोनों का ही प्रतिपादन कर देते हैं, अरे! सत्य तो जगत में एक ही है, अनेक नहीं।
जो मुनि है, वह केवल सत्य को ही पकड़कर और दूसरी सब वस्तुओं को छोड़कर संसार-सागर के तीर पर आ जाता है। उसी सत्यनिष्ठ मुनि को हम शांत कहते हैं।
वितिण्णपरलोकस्स नत्थि पापं अकारियं॥
बुद्ध कहते हैं कि सत्य को छोड़कर जो असत्य बोलता है, धर्म का उल्लंघन करता है, परलोक की जिसे चिंता नहीं है, वह आदमी बड़े से बड़ा पाप कर सकता है।
बहुँ पि चे सहितं भासमानो न तक्करो होति नरो पमत्तो।
गोपो व गावो गणयं परेस न भागवा साभञ्जस्स होति॥
जो मनुष्य शास्त्र की बातें तो बहुत कहता है, पर उसके अनुसार आचरण नहीं करता, वह वैसा ही है जैसा दूसरों की गाएँ गिनने वाला ग्वाला। वह भिक्षु बनने लायक नहीं।
यथापि रुचिरं पुप्फं वण्णवन्तं अगन्धकं।
एवं सुभासिता वाचा अफला होति कुव्वतो॥
देखने में फूल खूब सुंदर हो, पर उसमें खुशबू न हो तो उसका होना, न होना बराबर है। उसी तरह जो आदमी बोलता तो बहुत मीठा है, पर जैसा बोलता है वैसा करता नहीं, उसकी मीठी वाणी व्यर्थ है।
यथापि रुचिरं पुप्फं वण्णवन्तं सगन्धकं।
एवं सुभासिता वाचा सफला होति कुव्वतो॥
जिस तरह खुशबू वाले सुंदर फूल का जीना सार्थक है, उसी तरह जो जैसा कहता है वैसा करता है, उसकी वाणी सफल होती है।
सत्य के बारे में भगवान बुद्ध के विचार इस प्रकार हैं-
असत्यवादी नरकगामी होते हैं और वे भी नरक में जाते हैं, जो करके 'नहीं किया' कहते हैं।
जो मिथ्याभाषी है, वह मुण्डित होने मात्र से श्रमण नहीं हो जाता।
जिसे जान-बूझकर झूठ बोलने में लज्जा नहीं, उसका साधुपना औंधे घड़े के समान है। साधुता की एक बूँद भी उसके हृदय-घट के अंदर नहीं है।
जिसे जान-बूझकर झूठ बोलने में लज्जा नहीं, वह कोई भी पाप कर सकता है, इसलिए तू यह हृदय में अंकित कर ले कि मैं हँसी-मजाक में भी कभी असत्य नहीं बोलूँगा।
जितनी हानि शत्रु शत्रु की और वैरी वैरी की करता है, मिथ्या मार्ग का अनुगमन करने वाला चित्त उससे कहीं अधिक हानि पहुँचाता है।
सभा में, परिषद में अथवा एकांत में किसी से झूठ न बोलें। झूठ बोलने के लिए दूसरों को प्रेरित न करें और न झूठ बोलने वाले को प्रोत्साहन दें। असत्य का सर्वांश में परित्याग कर देना चाहिए।
अगर कोई हमारे विरुद्ध झूठी गवाही देता है तो उससे हमें अपना भारी नुकसान हुआ मालूम होता है। इसी तरह अगर असत्य भाषण से मैं दूसरों की हानि करूँ तो क्या वह उसे अच्छा लगेगा? ऐसा विचार करके मनुष्य को असत्य भाषण का परित्याग कर देना चाहिए और दूसरों को भी सत्य बोलने का उपदेश करना चाहिए। सदा ईमानदारी की सराहना करनी चाहिए।
असत्य का कदापि सहारा न लें। न्यायाधीश ने गवाही देने के लिए बुलाया हो तो वहाँ भी जो देखा है, उसी को कहें कि 'मैंने देखा है', और जो बात नहीं देखी, उसे 'नहीं देखी' ही कहें।
सत्यवाणी ही अमृतवाणी है, सत्यवाणी ही सनातन धर्म है। सत्य, सदर्थ और सधर्म पर संतजन सदैव दृढ़ रहते हैं।
सत्य एक ही है, दूसरा नहीं। सत्य के लिए बुद्धिमान विवाद नहीं करते।
ये लोग भी कैसे हैं। साम्प्रदायिक मतों में पड़कर अनेक तरह की दलीलें पेश करते हैं और सत्य और असत्य दोनों का ही प्रतिपादन कर देते हैं, अरे! सत्य तो जगत में एक ही है, अनेक नहीं।
जो मुनि है, वह केवल सत्य को ही पकड़कर और दूसरी सब वस्तुओं को छोड़कर संसार-सागर के तीर पर आ जाता है। उसी सत्यनिष्ठ मुनि को हम शांत कहते हैं।
Thursday 14 February 2013
Wednesday 6 February 2013
Monday 4 February 2013
Sunday 3 February 2013
waterfalls
Letchworth State Park, renowned as the "Grand Canyon of the East," is one of the most scenically magnificent areas in the eastern U.S. The Genesee River roars through the gorge over three major waterfalls between cliffs--as high as 600 feet in some places--surrounded by lush forests. Hikers can choose among 66 miles of hiking trails
RadheKrishna
दिल की हर धड़कन से तेरा नाम निकलता है ,
तेरे दर्शन को मोहन तेरा दास तरसता है
जन्मो के जनम लेकर मैं हार गया मोहन ,
दर्शन बिन व्यर्थ हुआ हर बार मेरा जीवन ,
अब धैर्य नहीं मुझ में इतना क्यूँ परखता है ,
क्या खेल रचाया है मोहरों की तरह मोहन ,
क्या खूब नचाया है कठपुतली सा मोहन ,
ये खेल तेरे न्यारे बस तू ही समझता है ,
एक बार तो आ जाओ मेरी बिगड़ी बना जाओ ,
दर्शन देकर प्यारे सोये भाग्य जगा जाओ ,
प्रीतम मेरे दिल में ये अरमान मचलता है
एक बार तो आ जाओ जन्मो से तुम्हारे है ,
तेरे नित्य मिलन को अब जीवन ये तरसता है ,
दिल की हर धड़कन से तेरा नाम निकलता है .
तेरे दर्शन को मोहन तेरा दास तरसता है
तेरे दर्शन को मोहन तेरा दास तरसता है
जन्मो के जनम लेकर मैं हार गया मोहन ,
दर्शन बिन व्यर्थ हुआ हर बार मेरा जीवन ,
अब धैर्य नहीं मुझ में इतना क्यूँ परखता है ,
क्या खेल रचाया है मोहरों की तरह मोहन ,
क्या खूब नचाया है कठपुतली सा मोहन ,
ये खेल तेरे न्यारे बस तू ही समझता है ,
एक बार तो आ जाओ मेरी बिगड़ी बना जाओ ,
दर्शन देकर प्यारे सोये भाग्य जगा जाओ ,
प्रीतम मेरे दिल में ये अरमान मचलता है
एक बार तो आ जाओ जन्मो से तुम्हारे है ,
तेरे नित्य मिलन को अब जीवन ये तरसता है ,
दिल की हर धड़कन से तेरा नाम निकलता है .
तेरे दर्शन को मोहन तेरा दास तरसता है
Saturday 2 February 2013
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